द्वापर युग से सम्बंधित बावड़ी
चित्र विचित्र की बावड़ी दादिया गांव में स्थित हे। इस बावड़ी का सम्बन्ध द्वापर युग में महाभारत काल से सम्बंधित है। राजा शांतनु थे जिनका प्रथम विवाह गंगा से हुआ था जिनके 7 पुत्रो को माता गंगा ने गंगा नदी में जन्म देने के बाद प्रवाह कर दिया था। जिनका 8 वी संतान भीष्म पितामह थे। भीष्म पितामह को भी गंगा में प्रवाहित करने के लिए उनकी माता गंगा उनको ले गई थी लेकिन राजा शांतनु ने अपने 7 पुत्रो को अपनी ही माँ के हाथो नदी में प्रवाह होते देख कर महाराज शांतनु ने अपने 8 वे पुत्र को नदी में प्रवाह नहीं करने के लिए कहा। तो माता गंगा ने भीष्म पितामह को नदी में नहीं प्रवाह किया। लेकिन जब महाराज शांतनु और गंगा का विवाह हुआ था तब गंगा ने उनसे वचन लिया था की मुझे किसी भी कार्य के लिए कभी टोकेंगे नहीं और पूछेंगे भी नहीं। यह वचन राजा ने तोड़ दिया था तो स्वयं गंगा ही गंगा में समा गई।
भीष्म प्रतिज्ञा
उसके बाद महाराज शांतनु व भीष्म पितामह दोनों ही थे। राजा शांतनु एक दिन आखेट करते हुए वन विहार कर रहे थे। जहा एक नाविक की कन्या मतस्यगंधा को देखा और उनसे विवाह के लिए उनके पिता के पास प्रस्ताव रखा। तो मतस्यगंधा के पिता ने शर्त रखी की उनकी पुत्री द्वारा उत्पन्न संतान ही हस्तिनापुर पर राज करे, परन्तु आपके जेष्ठ पुत्र तो भीष्म हे और वही हस्तिनापुर के उत्तराधिकारी होंगे तो उन्होंने विवाह प्रस्ताव को मानने से मना कर दिया। जब यह बात भीष्म पितामह को पता चली तो उन्होंने प्रतिज्ञा की आजीवन ब्रह्मचर्य का पालन करने की और इस शर्त को मतस्यगंधा के पिता ने मानकर उनका विवाह शांतनु से करवा दिया। शांतनु उन्हें सत्यवती के नाम से पुकारते थे।
चित्र और विचित्र के माता पिता और उनकी पत्निया
सत्यवती और राजा शांतनु के दो पुत्र हुए चित्रवीर्य और विचित्रवीर्य। कुछ समय पश्चात् राजा का निधन हो गया। एवं भीष्म पितामह ने स्वयंवर से अम्बा व अम्बालिका को हरण कर अपने दोनों भाई चित्र और विचित्र का विवाह करवा दिया। सत्यवती धार्मिक प्रवर्ति की थी और अपना शेष समय कथा सुनने में बिताती थी। इसी काल में भीष्म उन्हें कथा और धर्म ग्रन्थ का वचन कर सुनाते थे। और माता सत्यवती के कक्ष में ही विराजते थे।
चित्र विचित्र की बावड़ी का इतिहास
इसी बात पर दोनों भाई चित्र और विचित्र के मन में मनसापाप उत्पन्न हुआ की माता तो जवान है और भीष्म भैया भी जवान है। तो फिर अकेले क्यों रहते हे इसी बात की परीक्षा हेतु दोनों चुपचाप माता सत्यवती के कक्ष की और गए। और देखा की भीष्म कथा पढ़ रहे थे और माता को नींद आ गई थी। जिससे उनका एक पैर पलंग से लटका था तो भीष्म ने धर्म ग्रन्थ के सहारे से उनके पैर को पलंग पर रखा। यह देख दोनों भाई को बहुत हो ग्लानि हुई और दोनों पश्चाताप करने लगे। और इसी के लिए भैया भीष्म से पूछा की मनसापाप हो जाये तो प्राश्चित कैसे होता है। तो भीष्म पितामह ने कहा की जहा पारस पीपल का पेड़ हो, कामधेनु सुरभि गाय की बैठक हो और भूमि पवित्र हो उस स्थान पर स्वयं को अग्नि में अपना शरीर त्याग दे तो प्रायश्चित हो जाता हे। दोनों भाई यह सुन तुरंत हस्तिनापुर से निकल गए और ऐसे स्थान को ढूंढने लगे। वह दोनों ढूंढ़ते हुए
गंगरार जो पहले एक छोटा गांव था वहा आये और पूर्व दिशा में एक स्थान पर उपरोक्त सभी लक्षण मिले। फिर दोनों भाइयो ने मिल कर वहा एक बावड़ी का निर्माण कर और भगवान शिव की आराधना की और मनसा पाप हरण महादेव की स्थापना कर उन्हें उस बावड़ी के जल से स्न्नान करवा कर स्वयं निर्मल होकर अग्निकुंड में आत्मदाह कर लिया। उस समय से लेकर आज तक लोग उस स्थान को चित्र विचित्र की बावड़ी के नाम से जानते हे। इस बावड़ी का पानी कभी नहीं सूखता हे और यहा पर मनसा पाप हरण महादेव का मंदिर भी बना हुआ हे यहां पर दूर दूर से लोग आकर स्न्नान कर के आपने आप को धन्य मानते हे। यहा साल में एक बार एक दिन का फूलडोल मेला लगता हे
सारणेश्वर महादेव मंदिर गंगरार
जब भीष्मपितामह को अपने भाई कही दिखाई नहीं दिए तो उन्होंने उन्हें तलाश करने के लिए निकल गए और यहा पर आ पहुंचे। जब उन्हें पता चला की उनके भ्राता ने आत्मदाह कर लिया तो उन्होंने उनकी अस्थि विसर्जन के लिए गंगा माँ को प्रकट करने के लिए तपस्या की जो स्थान गंगरार
सारणेश्वर महादेव कहलाता हे
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18 Comments
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